Wednesday, November 09, 2005

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था

ना उड़ा यूं ठोकरो से मेरी खाकेकब्र ज़ालिम, यही एक रेह गयी है मेरे प्यार की निशानी

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा ना था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा ना था

वो के खुशबू की तरह फैला था मेरे चारसू
मैं उसे मेहसूस कर सकता था छू सकता ना था

रात भर पिछली ही आहट कानों में आती रही
झांक कर देखा गली में कोइ भी आया ना था

याद करके और भी तकलीफ होती थी ‘अदीम’
भूल जाने के सिवा अब कोई चारा ना था

3 comments:

Navjot Kashyap said...

Waiting for that gazal man :-))

Rahul said...

@navjot: There you go, buddy! Typing hindi takes a little time in the beginning, but its fun. Try it!

Rahul said...

@Nilesh: Thanks buddy!

No haven't heard this one, will check if its on Raaga. I'm actually thinking of writing out the lyrics of such gems more often. Watch this space!