ना था कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, ना होता मैं तो क्या होता
हुआ जब ग़म से युं बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का
ना होता ग़र जुदा तन से तो ज़ानो पर धरा होता
हुई मुदद्त के ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वो हर एक बात पर केहना के युन होता तो क्या होता
1 comment:
राहुल मिंया
छा गए। शायरी के शौकीन यहाँ भी हैं बस दूसरों का कलाम पढ़ कर खुश हो लेते हैं। लीजिए
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप:
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं!
यह शेर है ASAD
पंकज
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