It has been a while that I quoted poetry or even wrote here, but talking to someone at length last evening reminded me of this:
रोया करेंगे आप भी पैहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह
ना ताब हिज्र में है ना आराम वस्ल में
कमब्ख्त दिल को चैन नहीं किसी तरह
मर चुक कहीं के तू ग़म-ए-हिज्रा से छूट जाये
कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह
ना जाये वा बनी है ना बिन जाये चैन है
क्या कीजीये हमे तो है मुशकिल सभी तरह
हूं जान बलब बुताने सितमगर के हाथ से
क्या सब जहां में जीते हैं ‘मोमिन’ इसी तरह
Only that it doesn’t take a ‘Momin’ to understand his timeless words.
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