Wednesday, October 25, 2006

है इसी में प्यार की आबरू

है इसी में प्यार की आबरू
वो जफा करें मैं वफा करूं
जो वफा भी काम ना आ सके
तो वही कहें के मैं क्या करूं

मुझे ग़म भी उनका अज़ीज़ है
के उंही की दी हुई चीज़ है
येही ग़म है अब मेरी ज़िन्दगी
इसे कैसे दिल से जुदा करूं

जो ना बन सके मैं वो बात हूं
जो ना खत्म हो मैं वो रात हूं
ये लिखा है मेरे नसीब में
युहीं शमा बन के जला करूं

ना किसी के दिल की हूं आरज़ू
ना किसी नज़र की जूस्तजू
मैं वो फूल हूं जो उदास हूं
ना बहार आये तो मैं क्या करूं